म्यूजियम घूमने के बाद, मैं तलाश कर रहा था मोतीबाग नैरोगेज shed का, जो मैंने मेट्रो से देखा की कुछ नैरोगेज कोच अभी भी है। मैं निकल ,एक रास्ता मिला । चलते चलते ये नजर आया , नैरो गेज की पटरी अभी भी बिछी हुई है और पूरा झारिओं से ढक गया है। फिर मैं coaches और लोको की तलाश किया ,लोको तो नही मिला लेखिन coaches मिले,झरिओ के अंदर छिपे हुए मिले। मानो के बोल रहे हों,अब बस बहुत सेवा दी,अब ऐसे ही चैन की सांस लेकर बैठे रहेंगे। लगभग 7 से 8 coaches पड़े हुए मिले। हो सके इनको नैनपुर,मंडला fort,छिंदवाड़ा,सिवनी,बालाघाट,गोंदिया, Nagbhir,चंदा fort,कटंगी,इतवारी में प्रिजर्व किया जाए जैसे जबलपुर और भोपाल स्टेशन में है।